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पंचायती राज Panchayati raj system
- पंचायती राज व्यवस्था Panchayati raj system लोकतंत्रिक सरकार की प्रथम श्रेणी या स्तर है।
- भारत मे पचायती राज Panchayati raj system शब्द या अभिप्रया ग्रामीण स्थानीय स्वशासन पदधति से है 1992 के 73वें संवविधान संशोधन अधिनियम द्वारा इसे संविधान मे शामिल किया गया।
- स्वतंत्रा के बाद देश के समक्ष गवों के विकाश की तात्कालिक समस्या थी अतः 1952 मे सम्पूर्ण ग्रामीण विकास कार्य को ध्यान मे रखकर सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।
- राजस्थान 1959 मे पंचायती राज व्यवस्था Panchayati raj system लागू करने वाला पहला राज्य बना उसके बाद आन्ध्रप्रदेश ने इसे अपनाया।
73वें संसोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान
- इसने भारतीय संविधान मे भाग 9 का उपबंध किया।
- इस भाग को पंचायत नाम दिया गया जो अनुच्छेद 243(का) से 243(ण) तक है ईसे सुद्धाता प्रदान करने के लिए संविधान मे 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी जिसमे पंचायतों मे संबंधित 29 विषय का वर्णन किया गया है।
- सभी सत्रो पर पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष का है समय से पूर्व भंग होने पर 6 महीने मे चुनाव करने होगे।
- सबभी स्तरो पर पंचायतों मे 1/3 भाग (सदस्य और सरपंच दोनों) स्त्रियो के लिए आरक्षित होंगे।
- यह अधिनियम राज्यो मे त्रिस्त्रीय पंचायत की व्यवस्था करता है जो इस प्रकार है।
1.ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत
2.ब्लाक स्तर पर पंचायत समिति/क्षेत्र पंचायत
जिला स्तर पर जिला पंचायत /जिला परिषद पंचायती राज संस्थाओ के लिए अनिवार्य प्रावधान
- एक ग्राम या गावों की समूह मे ग्राम सभा का गठन
- ग्राम माध्यमिक और जिला स्तर पर पंचायतों की आस्थापना
- पंचायतों में चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए
- सभी स्तरों पर (प्रमुख एवं सदस्य दोनों के लिए) अनुसूचित जाती एवं जंनजातियों के लिए आरक्षण
- सभी स्तरों पर ( प्रमुख एवं सदस्य दोनों के लिए ) एक तिहाई पद महिलाओं के लिये आरक्षित
- सभी स्तरों पर पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष का निर्धारित। समय से पूर्व पंचायत भंग होने पर 6 महीने में चुनाव कराने होंगे।
- पंचायती राज Panchayati raj system संस्थानों में चुनाव कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना।
- पंचायतों की वितीय स्थिति की समीक्षा करने के लिए प्रत्येक 5 वर्ष बाद एक राज्य वित्त आयोग की स्थापना की जनि चाहिए।
सांगठनिक ढांचा
- गाँव के स्तर पर ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत के सदस्य ग्राम सभा दवार चुने जायेगे। ग्राम सभा का प्रधान
(अध्यक्ष) ग्राम पंचायत का पदेन सदस्य होगा।
नोट:- ग्राम सभा से तात्पर्य उस निकाय से है जिसमे गाँव स्टार पर गठित पंचायत क्षेत्र मे निर्वाचक सूची मे पंजीकृत व्यक्ति होते है।
- ब्लाक लेवल पर पंचायत समिति
- पंचायत समिति के अंतर्गत अनेक ग्राम पंचायत होते है उस ब्लाक के सभी ग्राम पंचायतो के प्रमुख पंचायत समिति के पदेन सदस्य होते है।
- जिला स्तर पर जिला परिषद
- जिला परिषद पंचायती राज Panchayati raj system की सर्वोच्च संस्था है। यह विभिन्न पंचायत समितियों की गतिविधियो को निर्देशीत करती है। जिला परिषद वास्तव मे जिला स्तर पर विकास की योजनाये बनाती है।
- पंचायत समिति की सहायता से ये ग्राम पंचायतों के बीच धनराशि का विनिमय करती है।
शहरी स्थानीय स्वशासन
भारत मे ‘शहरी स्थानीय स्वशासन’ का अर्थ शहरी क्षेत्र के लोगो द्वारा चुने प्रतिनिधियों से बनी सरकार से है।
1992 का 74वां संशोधन
- इस अधिनियम के दवार संविधान मे एक नया भाग 9(क) जोरा गया जोकि अनुच्छेद 243(त) से 243(यक्ष) तक है. साथ ही संविधान मे इसके कार्यो से संबन्धित 12वी अनुसूची जोरी गई।
- संशोधन दवार संविधान मे शहरी स्थानीय निकायों से संबन्धित 18 नए अनुच्छेद जोरे गए।
- स्वशासन की संस्थाओ को एक समान्य नाम “नगरपालिका” दिया गया
नगरपालिका के तीन प्रकार:
अधिनियम राज्यो मे तीन प्रकार के नगरपालिका की व्यवस्था करता है:
नगर पंचायत-
यह ग्रामीण क्षेत्रों से नगररीय क्षेत्रों मे परिवर्तित हो रहे क्षेत्रों मे होती है।
नगरपालिका-
यह 20000 से 3 लाख तक की जनसंख्या वाले छोटे शहरों के लिए होती है।
नगर निगम–
एक बड़े शहरी क्षेत्र जहाँ जनसंख्या 3 लाख से अधिक है वाहा नगर निगम होते है।
नगरपालिका संरचना –
नगरपालिका सभी सदस्यो का प्रतेक्ष चुनाव उस क्षेत्र की जनता द्वारा किया जाएगा इसके लिए प्रत्येक नगरपालिका क्षेत्रों को वार्डो मे विभाजित किया जाएगा नगरपालिका के अध्यक्ष के चुनाव विधान राज्य विधानमंडल बनाएगा।
स्थानो का आरक्षण:
नगरपालिका क्षेत्रों की कुल जनसंख्या मे अनुचित जाती / जनजाति की जनसंख्या के अनुपात मे स्थान आरक्षित होंगे एसे ही सुरक्षित स्थानो की कुल संख्या मे 1/3 स्थान अनुसूचित जाती/जनजाति की महिलाओ के लिए सुरक्षित होंगे और वयस्क मताधिकार के आधार पर भरे जाने वाले स्थानो मे 1/3 स्थान जिसमे सुरक्षित स्थान भी शामिल है। महिलाओ के लिए आरक्षित होंगे
नगरपालिका का कार्यकाल :
- प्रत्येक नगरपालिका का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा हालाँकि इसे समय पूर्व भी भाग किया जा सकता है।
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भारत का उच्चतम न्यायालय
भारत का उच्चतम न्यायालय सर्वोच्च न्यायिक मंच है और अपील का अंतिम न्यायालय है भारतिए संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय की भूमिका एक संघिए न्यायालय और संविधान के संरक्षण की है।
उच्चतम न्यायालय की संरचना
अनुच्छेद 124 (1) के अनुसार मूलत भारत के एक मुख्य न्याधीश और 7 अन्य न्यायाधीसों की व्यवस्था थी संविधान संसद को कानून द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की संख्या बढ़ाने के लीए अधिकृत करता है।
तदनुसार ससद ने उच्चतम न्यायालय ( न्यायाधीसों की संख्या ) संसोधन अधिनियम 2008 पारित किया और यह संख्या 31 (1 मुख्य न्यायाधीश +30 अन्य न्यायाधीश) हो गयी।
उच्चतम न्यायालय के लिए अहतार्य
- उस व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसे किसी उच्च न्यायालय का कम पांच साल के लिए न्यायाधीश होना चाहिए या उसे उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायलों मे मिलकर 10 वर्ष तक वकील होना चाहिए।
- राष्ट्रपति के मत मे उसे सम्मानित न्यायवादी होना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना
अनुच्छेद 124 (4) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की व्यवस्था देता है। वह राष्ट्रपति दवारा उसी सत्र में एसा संबोधन किया गया हो और उसे दोनों सदनों के विशेष बहुमत यानि सदन की कुल सदस्यता का बहुमत तथा सदन के उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों का दो–तिहाई समर्थन प्राप्त होना चाहिए। उसे हटाने का आधार उसका दुर्व्यवहार या कदाचार होना चाहिए।
राष्ट्रपति को उसे हटाने का आदेश उसी सत्र में जारी करना पड़ेगा जिस सत्र में संसद ने यह संकल्प पारित किया हो। अनुच्छेद 124(5) के अधीन संसद किसी आवेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधिश के कदाचार या असमर्थता की जाँच और साबित करने की प्रक्रिया का विधि दवारा विनियमन कर सकेगी। न्यायाधीश को हटाने संबंधी प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है।
इसका समर्थन कम से कम 100 लोकसभा सदस्यों दवारा किया जाना चाहिए।
इसका समर्थन कम से कम 50 राज्यसभा सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए।
किसी भी सदन में निष्कासन प्रस्ताव स्वीकार कर लिए जाने के बाद उस सदन के सभापति को लगाए आरोपों की जाँच समिति गठित करनी होगी।
न्यायिक समिति के प्रमुख उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश होगा। दो अन्य सदस्यों में एक किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश और एक कोई प्रतिष्ठित न्यायवादी होगा।
न्यायालय एक न्यायाधीश को हटाने की पूरी प्रक्रिया को दो प्रमुख भागो, न्यायिक कार्यवाही और राजनीतिक कार्यवाही में विभाजित करता है
न्यायिक भाग में शामिल है :
पीठासीन अधिकारी एक तीन सदस्यीय न्यायिक समिति नियुक्त करता है.
न्यायिक समिति आरोपों का अन्वेषण करती है।
राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश देते है।
जबकि राजनीतिक भाग मे शामिल है:
संसद मे प्रस्ताव प्रस्तुत पारित करना।
संसद के सदन का प्रताव पारित करना।
न्यायालय यह भी स्पष्ट करता है की न्यायिक समिति दवार दुवर्यवहार और असमर्थता के सबूत भली ही प्राप्त कर लिए जाए लेकिन इसके बाद भी संसद प्रस्ताव पास करने को बाध्य नहीं है. हालाँकि यदि न्यायिक समिति दुवर्यवहार और असमर्थता के सबूत प्राप्त नहीं कर पति है तो, संसद प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ा सकती.
भारत मे उच्चतम न्यायालय (क्षेत्राधिकार)
भारतीय संविधान के अध्याय 4, भाग 5 दवार भारत का उच्चतम न्यायालय सर्वोंच्च न्यायिक मंच है और अपील का अंतिम न्यायालय है. अनुच्छेद 124 से 147 मे इसकी संरचना और क्षेत्राधिकार संबंध प्रावधान है.
इसके क्षेत्राधिकार है- मूल क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्रधिकार और सलहकार क्षेत्राधिकार
यह सर्वोंच्च अपीलीय न्यायालय है जो उच्च न्यायालय और राज्यो एवं अन्य क्षेत्रों के न्यायालयों के निर्णयों पर सुनवाई करता है
उच्चतम न्यायलय से संबन्धित महत्वपूर्ण बिन्दु
उच्चतम न्यायलय की प्रथम महिला न्यायाधीश 1987 में फातिमा बीवी बनी। यदयपि अभी तक कोई महिला मुख्य न्यायाधीश नहीं बन है।
तदर्थ न्यायाधीश :
कोरम पूरा करने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को उच्चतम न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है .
तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति, मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की अनुमति और संबन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करता है।
उच्चतम न्यायालय के कार्यरत और सेवानिवृत न्यायाधीश तदर्थ न्यायाधीश के रूप में बैठ सकते है और कार्य कर सकते है।
केवल व्ही व्यक्ति तदर्थ न्यायाधीश बन सकता है जो उच्चतम न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश बानने की योग्यता रखता हो .
मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के सम्मुख शपथ लेते है .
भारत के प्रथम मुख्य न्यायाधीश एच जे कनिया थे(1950–1951)।
अब तक सबसे कम कार्यकाल के मुख्य न्यायाधीश के एन सिंह रहे है।( नवम्बर 1991–दिसम्बर 1991, यूपी)
सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्य न्यायाधीश वाई. वी चंद्रचूड़ थे (1978-1985, बाम्बे )
उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकारी
a) मूल क्षेत्राधिकार:
मूल क्षेत्राधिकार से तात्पर्य है की कुछ विशेष प्रकार के मामले केवल उच्चतम न्यायालाय में ही निपटाए जा सकते है .
उच्चतम न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार होता है –
केंद्र व एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद हो तो ,
विवाद जिसमें केंद्र और कोई राज्य या राज्यों का एक तरफ होना एवं एक या अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना
दो या अधिक राज्यों के बीच विवाद
मूल अधिकारों के पालन कराने से संबंधीत विवाद
b) अपीलीय क्षेत्राधिकार:
अपीलीय क्षेत्रधिकार से तात्पर्य है की निचली अदालतों ले मामले उच्चतम न्यायालय मे आते है क्यूकि यह अपील का सर्वोच्च और अंतिम मंच है।
c) सलहकार क्षेत्रधिकार:
1. सलहकार क्षेत्रधिकार उस प्रक्रया को बताता है जब राष्ट्रिपती को किसी विधिक मामले मे न्यायालय की सलाह चाहिए होती है।
2. यदि राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से कोई सलाह मांगते है तो इसके लिए अपना मत देना अनिवार्य है। हालाँकि, इस सलाह को स्वीकार करना राष्ट्रपति के अनिवार्य नहीं है।
Panchayati raj system पर आधारित FAQ प्रश्न
Q1. पंचायती राज कब लागू हुआ था?
1959 मे पंचायती राज व्यवस्था Panchayati raj system लागू हुआ था
Q2. नगरपालिका कितने प्रकार की होती हैं?
नगरपालिका तीन प्रकार के होता हैं
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