the basic concept of physics

By: Vivek

the basic concept of physics in hindi

भौतिक विज्ञान , विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों तथा द्रव्य से उसकी विभिन्न क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है ।

भौतिक विज्ञान के विशद अध्ययन हेतु इसे विभिन्न शाखाओं में बाँटा गया है कतिपय मुख्य शाखाए – (1)यंत्रिकी, (2)ऊष्मा, (3)ध्वनि, (4) चुम्बकत्व , (5)प्रकाश, (6)विधुत, (7)परमाणु भौतिकी,  आदि

मात्रक (units):-किसी भोतीक राशि की अभिव्यक्ति हेतु उसी राशि का कोई मानक (standard) स्वीकार कर लिया जाता है , इस मानक को मात्रक कहते है । मूल मात्रक वे होते है , जो दूसरे मात्रकों से स्वतन्त्र होते है । s . I . पध्दति के तहत निम्न छ: मूल मात्रक प्र्स्तवित है –

राशिमात्रकसंकेत बिन्दु
द्रव्यमानकिलोग्रामKg
समयसेकेण्डS
तापकैल्विनK
ज्योति तीव्रताकैणडलाCd
विधुत धाराऐम्पियरA
लम्बाईमीटरM

लम्बाई के शुध्द अन्य मात्रक इस प्रकार है –

मात्रकलम्बाई ( मीटर में )
1 डेकामीटार10 मीटर
1 हेक्टोमीटर102 मीटर
1 किलोमीटर103 मीटर
1 मेगा मीटर106  मीटर
1 गीगा मीटर109 मीटर
1 टेरा मीटर1012 मीटर
1 डेसी मीटर101 मीटर
1 सेंटीमीटर   102  मीटर
1 मिली मीटर103 मीटर
1 माइक्रोन106 मीटर
1 नैनोमीटर109
1 एंग्स्ट्राम1010
1 पिको मीटर10 12
1 फर्मी मीटर1015
 
concept of physics

अत्यधिक लम्बी दुरी के लिए निम्न मात्रक का प्रयोग किया जाता है-

(i)एक प्रकार वर्ष दुरी = प्रकाश द्वारा निर्वात में एक वर्ष में चली गई

दुरी = (9.46 x 1015 मीटर)

(ii) एक पारसेक दुरी = 3.26 प्रकाश वर्ष या 3 x 1016  मीटर दुरी

(iii) एक खगोलीय दुरी = पृथ्वी और सूर्य के बीच की औसत दुरी या 1.496 x 1011 मीट

दुरी नापने के अन्य इकाई –

(i)फैदम – समुद्र की गहराई नापने की इकाई |

(ii)अल्टीमीटर – वायुयान की उँचाई मापने का यन्त्र |

(iii)नोट – समुद्र जहाज की गति मापने का मात्रक

1 नोट = 185.2 मीटर/सेकेण्ड

(iv) नॉटिकल मिल – समुद्र दुरी के नापने का मात्रक एक नॉटिकल मिल = 1852 मीटर |

राशियाँ (Quantities)

आदिश राशि (Scaler Quantities) : वे भौतिक राशियाँ जिन्हें पूर्ण रूप से व्यक्त करने के लिए केवल परिमाण की आवश्यकता होती है, दिशा की नही, अदिश राशियाँ कहलाती है | जैसे- समय, चालू, द्रव्यमान, आयतन, ऊर्जा, कार्य, कोण, घनत्व, दाब, ताप, आवृति आदि |

सदिश राशि (vector Quantities ) : कपिपय भौतिक राशियाँ को प्रदशित करने के लिए परिणाम के साथ-साथ दिशा की भी आवश्यकता होती है | अर्थात वे भौतिक राशियाँ जिन्हें पूर्ण रूप से व्यक्त करने के लिए परिणाम एवं दिशा दोनों की आवश्यकता होती है, सदिश राशियाँ कहलाती है |

जैसे – संवेग, आवेग, बल, त्वरण, वेग, भर, विघुत क्षेत्र आदि

कार्य work

जब किसी वस्तु पर कोई बल लगाकर उसकी स्थिति मे परिवर्तन किया जाता है तो कहा जाता है की उस वस्तु पर कार्य किया गया यदि बल लगाए जाने से कोई वस्तु अपने स्थान से नहीं हटती तो उस अवस्था मे कोई कार्य नहीं होता

जैसे- किसी दीवार को धक्का दिया जाना |

        किए गए कार्य की माप , वस्तु पर आरोपित बल तथा बल की दिसा मे वस्तु के

        विस्थापन के गुणनफल के बराबर होती है|

कार्य = बल x बल की दिशा मे वस्तु का विस्थापान MKS पद्धति  मे कार्य का मात्रक जुल (jule) है यदि किसी कारक द्वारा किसी भी वस्तु पर एक न्यूटन का बल लगाने पर वस्तु का बल की दिशा मे विस्थापन एक मीटर हो तो एसी स्थिति मे कारक द्वारा किया गया कार्य एक जुल अथवा एक न्यूटन मीटर कहलाता है |

1 जुल = 1 न्यूटन x 1  मीटर

साम्थ्रय का मात्रक – जुल प्रति सेकेंड या वाट (watt) है

1 वाट =  1 जुल प्रति सेकेंड

1 किलो वाट =   1000 वाट = 103 वाट

1 मेगावाट =106 वाट

1 अस्व सक्ति = 746 वाट

गुरुत्व (Gravitation )

पृथ्वी सभी वस्तु को अपने केंद्र की ओर खिचने (आकर्षित करने ) की प्रविरती रखती है

इस  आकर्षण बल को गुरुत्वीय बल (Gravitation force) कहते है किसी वस्तु पर लगाने  वाला गुरुत्वीय बल ही उसका भार  कहलाता है पृथ्वी के सतह पर कुरुत्वीय बल का मन धुर्वों पर सर्वाधिक तथा भूमध्य रेखा पर सबसे कम होता है इसलिए वायक्ति का भार भूमध्य रेखा की अपेकषा धुर्वों पर अधिक होता है जबकि पृथ्वी ताल से ऊपर या नीचे जाने पर गुरुत्वीय बल का मान कम होता है पृथ्वी के केंद्र पर गुरुत्वीय बल का मान सुनी होता है

अतः किसी वस्तु का भार पृथ्वी के केंद्र सुनय परंतु द्रवमान वही रहेगा चंद्रमा का भी एक आकर्षण बल (गुरुत्वीय बल ) होता है परंतु अपने हो हलका महसूस करेगा यदि पृथ्वी पर कोई एक मीटर उठल सकता है जो चंद्रमा पर 6 मीटर उछाल सकेगा जबकि कृत्रिम उप गृह पर ब्भर हीनता की स्थिति पायी जाती है

गुरुत्व केंद्र (centre of gravity ) – किसी वस्तु का समस्त भार जिस आधार बिन्दु पर होता है , उसे गुरुत्व केंद्र कहते हैं । किसी वसतू को संतुलन में रखने के लिए आवश्यक है की वस्तु का भार ( गुरुव केंद्र ) , उस वस्तु के आधार के क्षेत्रफल के ठीक नीचे हो । यदि गुरुत्व केंद्र इससे बाहर जाता  है तो वसतू असंतुलित होकर गिर पड़ेगी । पहाड़ पर चढ़ते समय मनुष्य आगे की ओर झुक कर गुरुत्व केंद्र को अपने आधार क्षेत्रफल के अन्दर रखने का प्र्याश करता है , ताकि गिरे नहीं ।

पलायन वेग ( escape velocity ) – वह न्यूनतम वेग , जिससे किसी पिण्ड को पृथ्वी तल से ऊपर फेंक जाने पर इसके गुरुत्वीय क्षेत्र से बाहर अन्तरिक्ष में चला जाये और वापस पृथ्वी पर न आये , उसे पलायन वेग कहते है । पृथ्वी के तल पर पलायन वेग का मान 11.2 किलोमीटर / सेकेण्ड है , किलोमीटर / सेकेण्ड है । चन्द्रमा पर वायुमंडल न पाये जाने के कराण चन्द्रमा पर गैस के अणुओं का वेग , ( वर्ग माध्य , मूल वेग ) पलायन वेग से अधिक होता है ।

जबकि बृहस्पति , शनि आदि पर गैसों के अणुओं का वेग , पलायन वेग से कम होने के कारण यहाँ वायुमंडल पाया जाता है ।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :    

ब्लैक होल मृत तारे की अन्तिम पर्णित ( final stage ) होती है । जिसमें तारे का घनत्व अनंत हो जाता है और प्रकाश परावर्तित नहीं हो पता है ।

वही तारा ब्लैक होल में परिवर्तित होता है जिसका द्र्व्यमान सूर्य के द्र्व्यमान का 1.4 गुना होता है ।

कृत्रिम उपग्रह ( artificial satellite ) को पलायन वेग के कम मान से प्र्क्षेपित किया जाता है जबकि दूसरे ग्रह पर किसी पिण्ड को भेजने के लिए प्लायन वेग ( 11.2 km / sec ) के मान से प्र्क्षेपित किया जाता है ।

कृत्रिम उपग्रह दो प्रकार के होते है – (1) ध्रुवीय उपग्रह ( polar satellite ), (2) भूस्थिर उपग्रह ( geostationary satellite )।

ध्रुवीय उपग्रह  ( polar satellite ): ध्रुवों से लाघभग 900 km की ऊचाई पर स्थित होते हैं । उपयोग – जो मौसम की जानकारी में योगदान करते है ।

भूस्थिर उपग्रह ( geostationary satellite ): भूमध्य रेखा से 36000 km की ऊँचाई पर स्थित होने के साथ – साथ पृथ्वी से सदैव समान दूरी पर बने रहते है । उपयोग – इनका योगदान दूरसंचार के क्षेत्र में होता है ।

भारत में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ( P. S. L. V. – polar sattelite launch vehicle ) में ठोस ईंधन के रूप में हाइड्राक्सिल ट्र्मिनेटेड पाली ब्यूटी डाइ – इन तथा तरल ईंधन के रूप में मेथिल हाइड्राजीन का उपयोग होता है ।

इसमें तरल ईंधन वाला विकास इंजन प्रयुक्त होता है ।

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान में ( GSLV – geostationary satellite launch vehicle ) में तरल ईंधन के रूप में द्रव हाइड्रोजन (- 250०c ) तथा द्रव आक्सिन ( – 183०c ) प्रयुक्त किया जाता है ।

GSLV मे क्रायोजेनिक इंजन (निम्न तापीय इंजन) प्रयुक्त होता है |

भूस्थिर उपग्रह का परिक्रमण काल 24 घण्टे का होता है

उपग्रह कक्षा मे स्थापित होने के बाद इसे पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए आवश्यक अभिकेन्द्र्ये बल पृथ्वी के गुरुत्वाकराशन  से मिलता है जबकि इस लगे सायंत्रों को ऊर्जा सुर्ये के प्रकाश से सौर सेलों द्वारा  मिलती है |

भारत मे वर्ष  1969 मे ISRO (indian space research organization) इसरो  का गठन किया गया  |

इसरो के विभिन्न केन्द्रो के अंतर्गत –

विक्रम साराभाई अन्तरिक्ष केंद्र : तिरुअंतपुरम मे स्थापित है जिसे उपग्रह प्रक्षेपनयन का विकाश कहा जाता है

श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश / सतीश धवन केंद्र : ये उपग्रह प्रेक्षपण का केंद्र है

इसरो उपग्रह केंद्र बंगलौर : ये केंद्र भारतीय उपग्रह की डिजाइन व डिजाइन के अनुरूप  उपग्रह का निर्माण करता है |

इसरो केंद्र हसन कर्नाटक : ये केंद्र उपग्रह प्रक्षापेन के पश्चात इसकी समस्त गतिविधियो का नियंत्रण करता है दूसरा उपग्रह दूसरा उपग्रह नियंत्रण केंद्र भोपाल मे स्थित है |

वर्ष 1975 मे प्रथम भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट का प्रक्षपण पूर्व सोवियत संग से किया गया |

भारत मे 1972 मे अन्तरिक्ष आयोग की स्थापना हुई |

मिसाइल प्रढ़ोगिकी भारत मे मिसाइल के विकास के लिए एक समन्वित मिसाइल कार्यकरम प्रारम्भ किया गया इसके लिए DRDO (defense research and development organization) के 3 प्रमुख केंद्र स्थापित किए गए

नई दिल्ली केंद्र : ये केंद्र मिसाइल की परियोजना बंता है |

हैदराबाद केंद्र : ये परियोजना के अनुरूप मिसाइल का निर्माण करता है |

चाँदीपुर केंद्र (उड़ीसा) : ये निर्मित मिसाइल का परीक्षण करता है |

अब तक इस कार्य क्रम के अंतर्गत निम्न मिसाइलों बनाई गयी|

 पृथ्वी और अग्नि सतह से सतह मे मार करने वाली मिसाइल |

अगनी मिसाइल का मारक क्षमता

अग्नि – i  एक मात्र ठोस इधन आधारित मिसाइल है |

अग्नि – i  : 1500 – 2000 किमी.

अग्नि-  ii : 250 – 3000 किमी.

अग्नि – iii : 3500 – 4000 किमी.

पृथ्वी मिसाइल की मारक क्षमता –

पृथ्वी-i : 150 – 250 किमी.

ii. आकाश और त्रिशूल : सतह से वायु (surface to Air) में मार करने वाली मिसाइल

आकाश मिसाइल की मारक क्षमता – 25 – 30 किमी.

त्रिशूल मिसाइल की मारक क्षमता – 4 से 5 किमी .

iii. नाग : एक टैक रोधी मिसाइल है |

iv. सूर्य एवं सागरिका : अन्तरमहद्रिपीय मिसाइल है |

v. p.j. 10 ब्रह्झोस मिसाइल

vi. ब्रह्झोस मिसाइल : एक सुपर सेनिक क्रूज मिसाइल है, जिसका मारक क्षमता 290 किमी. है |

अपने वर्ग की यह मिसाइल दुनिया की सबसे तेज मिसाइल है |

भारत और रूस के समझौते से निर्मित है |

लिफ्ट के तल पर भाग कर अनुभव – किसी वास्तु का भार उसके  = द्र्वाय्मन तथा गुरुत्वीय त्वरण के कारण होता है अर्थात भार = द्र्वाय्मान x गुरुत्वीय त्वरण यदि लिफ्ट पर खरा कोई वयक्ति लिफ्टके स्थिर या सामान गति से चलने पर सामान्य भार का अनुभव करेगा यदि लिफ्ट सामान वेग से ऊपर जा रही हो तो वयक्ति को अपना भार कुछ अध् हुआ लगेगा यदि लिफ्ट सामान त्वरण से निचे आ रही हो तो वयक्ति को अपना भर घटा हुआ प्रतीत होगा यदि लिफ्ट स्वतंत्र रूप से निचे गिर रहू हो तो व्यक्ति को भारहीनता का अनुभव होगा |

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दाब (pressure)

किसी सतह के एकाक क्षेत्रफल पर लगने वाले बल को दाब कहते है । अतः

दाब =

उक्त सूत्र से स्पष्ट है कि वस्तु का क्षेत्रफल जितना ही कम होगा वह सतह पर उतना ही अधिक दाब डालेगी । इसलिए लोहे की कील का नोक नुकीला बनाया जाता है । ताकि वह आसानी से दीवाल में घंस सके । दलदल में फसा व्यक्ति खड़े होने की अपेक्षा लेटने पर कम या नहीं घंसता / डूबता है ।

वायुमण्डलिए दाब (atmospheric pressure ) 

चारों ओर वायुमण्डल (विभिन्न गैसों का मिरण ) होता है जो हमारे ऊपर दाब डालती है । वायुमण्डलीए दाब कहा जाता है । वायुमण्डलीए गैसों या वायु के इस दाब को वायुमंडलीय दाब कहा जाता है | वायुमंडलीय दाबवह दाब है जो समुन्द्र तल पर पारे के 76 सेमी. लम्बे स्तम्भ के दाब के बराबर होता है |

समुन्द्र तल पर वायुमंडलीय दाब 105  न्यूटन /मीटर2 होता है | इसी 105 न्यूटन /मीटर 2 दाब एक बार (bar) दाब (बार दाब का मात्रक है)| पास्कल भी कहते है | वायुमंडल का इतना अधिक दाब हमे महसूस नहीं होता क्योकि हमारे शरीर मे रक्त तथा अन्य कारक के दाब अन्दर से वायुमंडलीय दाब को संतुलित करते है |

समुन्द्र तल से ऊपर जाने पर वायु विरल होती है और वायुमंडलीय दाब घटता जाता है | इसलिए उच्च रक्त चाप वाले व्यक्ति को हवाई जहाज मे नहीं बैठने की सलाह दी जाती है | वायुमंडलीय दाब या वायु के दाब को बैरोमीटर से मापा जाता है | जबकि किसी गैस का दाब मापने के लिए नैनोमीटर का प्रयोग किया जाता है |

बैरोमीटर से पारे का स्तम्भ गिरना आंधी या वर्षा की सूचना देता है (क्योकि जब आंधी या वर्षा आने वाली होती है तो वायुदाब घाट जाता है |) जबकि बैरोमीटर मे पारे के स्तम्भ का बढ़ना स्वच्द मौसम होने की सूचना देता है |

सभी द्र्वो का क्वानाक्थ (boiling point ) दाब बढ़ाने पर पानी 100. C पर खोलने लगता है जबकि पहरो पर दाब कम होने के कारण कम ताप पर ही पानी खौलने लगता है | जबकि प्रेशर कुकर मे अधिक दाब होने के कारण पानी अधिक ताप पर खौलता है, इसीलिए कुकर मे किसी संरगी को आसानी से पकाया जा सकता है | प्रेशर कुकर के अन्दर 15 पौण्ड का दाब तथा 120. C का ताप बनाया जाता है (पास्कल भी दाब का एक मात्रक है ) |

ऊर्जा (Energy)

किस वस्तु की कार्य करने की क्षमता उस वस्तु की ऊर्जा कहलाती है जब कोई कारक कुछ कार्य करता है तो उसे अपनी कुछ ऊर्जा खर्च करनी परती है जितना आधीक कार्य किया जाएगा उतना ही अधिक ऊर्जा व्यय होगी किसी कारक द्वारा किए गए कार्य की क्रिया को ऊर्जा का स्थानांतरण कहते है |

ऊर्जा दो प्रकार की होती है

1 गतिज ऊर्जा    2 स्थितिज ऊर्जा

गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy ) किसी वस्तु की गति के कारण कार्य करने की क्षमता को उसकी गतिज ऊर्जा कहते है | यदि m द्रव्यमान वाली किसी वस्तु का वेग v है तो उसकी गतिज ऊर्जा होगी –

                   E=  mv2

उक्त सूत्र से यह स्पष्ट है की गतिज ऊर्जा का मान वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है यही कारण है  की बंदूक की गोली यधापी की बहुत कम द्रव्यमान की होती है किन्तु वेग अधिक होने के कारण विषेस चोट करती है |

2 स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy) किसी वस्तु उसकी सिटि अथवा अवस्था के कारण विधमान कार्य करने की क्षमता को उस वसु की स्थितिज ऊर्जा कहते है वस्तुओ म यह ऊर्जा विभिन्न रूपो मे विधमान हो सकती है जैसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा वैधुत स्थितिज ऊर्जा रसायनिक ऊर्जा चंबकिए स्थितिज ऊर्जा |

प्रकाश ध्वनि ऊष्मा विद्धुत आदि ऊर्जा के दूसरे रूप है इस ऊर्जा का एक दूसरे मे परिवर्तन होता रहता है ऊर्जा का परिवारता करने वाले कुछ यंत्र इस प्रकार है

    यंत्र                                            ऊर्जा के स्वरूप मे परिवर्तन
concept of physics

विद्धुत सेल                              रसायनिक ऊर्जा से विधुत ऊर्जा मे

विद्धुत बल्ब                            विधुत ऊर्जा से ऊष्मा एवं प्रकाश ऊर्जा मे

डायनमो                                  यांत्रिक ऊर्जा से विधुत ऊर्जा मे

टरबाइन                                  यांत्रिक ऊर्जा से विधुत ऊर्जा मे

विद्धुत मोटर                           विधुत ऊर्जा से यांत्रिक ऊर्जा मे

फोटो इलेकिट्रिक सेल                प्रकाश ऊर्जा से विधुत ऊर्जा मे

माएक्रोफोन                              ध्वनि ऊर्जा से विधुत ऊर्जा मे

लाउडस्पीकर

वाध यंत्र 

द्र्व्यमान ऊर्जा (mass energy)

सन 1905 में आइन्सटाइन ने यह प्रतिपादित किया की द्र्व्यमान तथा ऊर्जा भी एक दूसरे से रूपन्तरित हो सकते है । आशय यह कि पदार्थ का द्र्व्यमान भी ऊर्जा का ही एक स्वरूप हैं इसे द्र्व्यमान ऊर्जा (mass energy) कहते है ।

उन्होने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी m द्र्व्यमान कि वस्तु को पूर्णतः ऊर्जा में परिवर्तित कर दिया जाये तो इससे mc2 परिमाण की ऊर्जा उत्पन्न होगी । जबकि c=3 8 मीटर/ सेकेण्ड प्रकाश की गति है । इस सिद्धान्त के तहत m द्र्व्यमान से कुल प्राप्त होने वाली ऊर्जा का मान E = mc2  

यदि 1 ग्राम द्रव्यमान को ऊर्जा में पूर्णतः बदल दिया जाय तो इससे मिलने वाली ऊर्जा का मान

E=  किग्रा0 ×(3×108 मी / से.2 ) = 9×1013 जुल इसे आइन्सटाइन का द्र्व्यमान ऊर्जा सम्बन्ध कहते है ।

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सौर ऊर्जा (solar energy)   

सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहते हैं । इसे ऊर्जा का मूल स्रोत नाभिकिए संलयन (nuclear fusion) है । इस प्रक्रिया के तहत हाइड्रोजन के चार नाभिक आपस में क्रिया करके हीलियम का एक नाभिक बनाते है । इस प्रकार की किक्रया को नाभिकीय संलयन कहते हैं ।

हिलीयम बनने की इस प्रक्रिया में परिवर्तित हो जाता है । इस नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया से सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा का विवेचन भली भांति हो जाता है । सूर्य में लगभग 99% हाइड्रोजन होता है ।

प्लवन का नियम (low of floatation )

जब कोई वस्तु आंशिक अथवा पूर्णत किसी द्रव मे डुबोई जाती है तो उसके भार मे कमी आ जाती है | यह कमी वस्तु पर द्रव के उत्क्षेप के कारण होती है | यह उतपेक्ष ऊपर की ओर कार्य करता है | साथ ही वस्तु का भार नीचे की तरफ कार्य करता है |

अतः जब कोई वस्तु किसी द्रव मे डुबोई जाती है | तो इस स्थिति मे उस पर दो बल कार्य करते है| (i) वस्तु का भार W1  नीचे की ओर (II) द्रव की उछाल wऊपर की ओर | किसी वस्तु का द्रव मे संतुलन इन दोनों बालो के आपेक्षिक परिणाम पर निर्भर करता है |

कोई वस्तु किसी द्रव मे आंशिक अथवा पुर रूप से डूबी हुई तब तैरती है जब उस वस्तु का भार वस्तु के डूबे हुए भार द्वारा हटाए गए द्रव के भार के  बराबर होता है | यही कारण है की लोहे का जहाज पनि पर तैरता है किन्तु जहाज मे लगे लोहे का एक पिंड बना दिया जाए तो वह डूब जाएगा |

भौतिक विज्ञान कुछ परिभाषाएँ

विस्थापन (displacement ) : गति शील वस्तुओ के मध्य जो न्यूनतम दूरी होती है , उसे विस्थापन कहा जाता है |चाल (speed) : एक इकाई समय मे वस्तु द्वारा जो दूरी तय की जाती है |उसे उस वस्तु की चाल कहा जाता है | इसका मात्रक मीटर / सेकेण्ड है । यह एक अदिश राशि है ।

वेग (velocity) : किसी भी गतिशील वस्तु के विस्थापन की दर को वेग कहा जाता है यह सदिश राशि होती है । इसका कारण यह की इसके स्थानान्तर की दिशा निशिचत होती है

सेंवेग तथा संरक्षण का सिद्धान्त : एक वस्तु में जितना संवेग परिवर्तन होता है दूसरे में भी उतना ही संवेग विपरीत दिशा में आ जाता है , अर्थात दो या दो से अधिक वस्तुओं के निकाय में संवेग तब तक नहीं बदलेगा , जब तक उसका पर बाह्य बल न लगाया जाये ।

इसे ही संवेग संरक्षण का सिद्धान्त कहते है । राकेट का ऊपर की ओर जाना संवेग संरक्षण के सिद्धान्त पर आधारित है ।

त्वरण (acceleration): किसी वस्तु के वेग परिवर्तन की दर को उस वस्तु का त्वरण कहते है ।  इसे ‘a’ से प्रदशित  किया जाता है | यह सदिश राशि है |

स्थानांतरित गति (translatory motion): यदि कोई वस्तु सीधी रेखा में गति कहती है, एसी गति को स्थानांतरिक गति कहते है |

सापेक्षिक वेग (Relative Velocity): किसी एक वस्तु  अपेक्षा दूसरी वस्तु के वेग को सापेक्षिक वेग कहा जाता  है |

भार (Weight): किसी वस्तु पर पृथ्वी द्वारा लगाये गया आकर्सन बल उस वस्तु कभार कहलाता है | भार मक्त्र न्यूटन है |

सन्तुलित बल (balanced forc ): जब किसी पिंड पर एक से अधिक बल कार्य करते है और उन सभी बलों का परिणामी बल शून्य हो तो वह पिण्ड सन्तुलन अवस्था होगा | इस दशा में पिन्न्द पर लगने वाले सभी बल कहलाते है

अपकेद्रिये बल : वृत्तीय मार्ग पर चल रहे पिण्ड के केंद्र की और से एक बल लगता है जिसे अपकेन्द्र (Centrifugal Force ) कहते है उदहारण washing मशीन द्वारा कपर सुखना तथा दूध से मक्खन निकलने की मशीन आदि अप्केंद्रिये बल से सिद्धान्त पर कार्या करते है |

अभिकेन्द्री बल (Centripetal Force) किसी बल के परिणाम स्वरूप गतिसील वस्तु मे वृत्ताकार पाठ के केंद्र की तरफ भागने की प्रवृत्ति रहती है उसे अभिकेन्द्र बल कहा जाता है |

पृथ्वी का सूर्य के चरो ओर चक्कर लगाना तथा चौराहे पर मुदत्रते समय साइकिल  सवार का झुक जाना आदि अभिकेन्द्रिए बल के सिधान्त्त पर कार्य करते है

आसंजक बल (Adhesive Force) आकर्षण बल बल के कारण विभिन्न द्रवय उससे चिपके रहते है उसे आसंजक बल कहा जाता है तथा इस घटना को आसन्नजक कहा जाता है

प्रत्यास्थता (Elasticity) किसी भी वस्तु के पदार्थ का वह गुण जिसके कारण वह अपने ऊपर लगाए गए किसी भी प्रकार के रूपक बल (ब्रह्म बल ) का विरोध करता है उसगुण को प्रत्यास्थ्व कहते है

पृष्ठ तनाव (surface tension) : प्रत्येक द्रव का गुण होता है कि वह अपने स्वतन्त्र पृष्ठ को सिकोड़कर न्यूनतम करने की प्रवृति रखता है । इसके कारण द्रव के बाह्य स्वतंत्र पृष्ठ तनी हुई झिल्ली की भांति व्यवहार करता है , द्रव के बाह्य पृष्ट के इस तनाव को पृष्ट तनाव कहा जाता है । पृष्ट तनाव के कारण ही वर्षा तथा ओस की बूंदें गोल दिखती है । क्योंकि गोल पृष्ट ही न्यूनतम क्षेत्रफल रखता है ।

साबुन का घोल वहां पहुच  जाता है जहां तक कपड़े में साधारण जल नहीं पहुच पाता है इसलिए कपड़े धूल कर साफ हो जाते है । जल पर सुई का तैरना पृष्ट तनाव के कारण है । समुद्र की लहड़े को तेल डालकर शान्त कर देना पृष्ट तनाव का उदाहरण है । पृष्ट तनाव के करण जल या द्रव के अणुओं के बीच ससंजक बल का होना है ।

श्यानता (viscosity): द्रव का वह गुण जिसके कारण वह अनेक परतों के मध्य आपेक्षित गति का प्रतिरोध करता है, श्यानता कहलाता है ।

वायु की श्यानता द्रव की आपेक्षा कम होती है इसलिय वायु मे दौरना आसान तथा पनि मे कठिन | बादल, वायु की श्यानता तथा अपने कम घनत्व के कारण हवा मे तैरते है |

प्रतिध्वनि (Echo): जब ध्वनि तरंगे किसी दृढ़ वस्तु से टकराकर परवर्तित होती है तो इस परवर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते है |

पुनर्हिमायन (Regelation): दाब के परिणाम स्वरूप बर्फ का निम्न द्रवनांक पर गलना और दाब हटाने जाने पर उसे पुन: जम जाने की क्रिया को पुनर्हिमायन कहा जाता है |

निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute humidity): वायुमंडलीय हवा के एक घन मीटर आयतन मे उपस्थित जलवाष्प की मात्रा का निरपेक्ष आर्द्रता के नाम से जाना जाता है |

,प्रच्छया (Umber): पूर्ण छाया को प्रच्छया के नाम से जाना जाता है विशेस बात यह है की यहां से प्रकाश का स्रोत दिखाई नहीं पड़ता |

प्रकाशमिति (Photometry): इसके अंतर्गत प्रकाश करने वाली किसी वस्तु की प्रदीपन क्षमता की माप का विवेचन किया जाता है |

 आपेक्षित घनत्व (Relative Density): दो पदार्थो द्रवों या गैसों का घनत्व समान नहीं हो सकता है उनके घनत्व मे कुछ न कुछ असमानता होती है दो पदार्थो के घनत्व के अनुपात को आपेक्षित घनत्व कहा जाता है द्रव का आपेक्षित घनत्व हाड्रोमीटरी से मापा जाता है

दूध की सुधता मापने का यंत्र लौक्टोमीटर आपेक्षित घनत्व के सिद्धांत पर कार्य करता है तेल पेट्रोल मिट्टी के तेल का आपेक्षित घनत्व कम होने के कारण ही पनि मे मिलाये जाने पर ऊपर आ जाता है जबकि ग्राम गैसों के ऊपर उठाना आपेक्षित घनत्व के सिद्धांत पर आधारित       है |

ऊष्मा (Heat)

ऊष्मा (Heat) एक प्रकार की ऊर्जा है जो दो वस्तुओ के बीच उनके तापांतर के परिणामस्वरूप एक वस्तु से दूसरी वस्तु मे बहती है ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है जिसे कार्य मे बदला जा सकता है इसका प्रमाण सर्वप्रथम रदरफोड (Rumford) ने दिया था जूल (joule) ने यह स्पस्त किया की ऊष्मा ऊर्जा का ही एक रूप है |

ताप का मापन

(Measurement of Temperature concept of physics )

ताप मापन हेतु जो उपकरण प्रयोग मे लाया जाता है उसे तापमापी कहा जाता है जो ताप (Temperature) मे परिवर्तन के अनुपात मे बदला रहता है | इसे ताप मापक गुण कहते है |

ताप मापन के पैमाने

सेलीसायस पैमाना (Celsius Scale ): इसकी खोज स्वीडेन वैज्ञानिक सेल्सियस ने किया था, उन्ही के नाम पर इसका नाम कारण किया गया | इस पैमाने मे हिमांक को 0.C एवं मॅप बिन्दु को 100.C मे अंकित किया जाता है एवं इने बीच की दूरी को 100 बराबर भागो मे विभक्त कर दिया जाता है | इसके प्रत्येक भाग को एक डिग्री सेन्टिग्रेट कहते है |

फारेन हाइट पैमाना (Fahrenheit scale): इसका आविष्कार, जर्मन वैज्ञानिक फारेनहाइट ने किया गया था | इसमे ताप को ‘f’ से प्रतिर्शत करते है | इसमे हिमांक या निचले बिन्दु को 32.f तथा वाष्प बिन्दु या ऊपरी बिन्दु को 212 डिग्री फारेनहाइट पर प्रतिर्शत किया जाता है |

रयुमर पैमान (Reamure Scale): इस पैमान पर आंधों बिन्दु अथवा हिमांक को O. एवं उढ़र्द्वबिंदु अथवा वाष्प बिन्दु को 80. पर प्रतिर्शत किया यजता है | इन दोनों बिन्दुओ के बीच कयसी दूरी को 80 बराबर भागो मे विभक्त कर दिया जाता है | इस पैमान मे ताप को ‘r’ से प्रतिर्शत करते है|

केल्विन पैमान (kelvin Scale): इस पैमान पर हिमांक अथवा अधोबिंदु को 273.k एवं वाष्प बिन्दु को 373.k पर प्रतिर्शत किया जाता है दोनों बिन्दुओ के मध्य की दूरी को 100 बराबर भागो मे विभक्त किया जाता है तथा ताप को केल्विन (K)से व्यक्त करते है|

गुप्त ऊष्मा (latent heat)

स्थिर ताप पर किसी पदार्थ के अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्र प्रति एकांक द्र्व्यमान को उस पदार्थ की गुप्त ऊष्मा (latent heat) कहते हैं । गुप्त ऊष्मा दो प्रकार की होती है –

गलन की गुप्त ऊष्मा (latent heat of melting) : यह ऊष्मा की वह मात्रा है जो बिना ताप बदले एकांक द्र्व्यमान के ठोस को द्रव में बदलने के लिए आवश्यक होती है ।

इसका मात्रक कैलोरी / ग्राम या किलो कैलोरी / ग्राम अथवा जुल / किग्रा०है ।

वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (latent heat of vaporization): यह ऊष्मा की वह मात्रा है जो एकांक द्र्व्यमान के द्रव को सम्पूर्ण रूप से बिना ताप परिवर्तन के वाष्प अवस्था में बदलने के लिए आवश्यक है । इसका मात्रक कैलोरी / ग्राम या किलो कैलोरी / किलोग्राम अथवा जुल / किलोग्राम है ।

ऊष्मा का संचरण : ऊष्मा का एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को ऊष्मा का संचरण कहते है । इसकी तीन विधियाँ है – (1) चालन , (2) संवहन और (3) विकिरण ।

चालन (conduction): चालन के द्वारा ऊष्मा पदार्थ में एक स्थान से दूसरे स्थान तक , पदार्थ के कणों को अपने स्थान का परिवर्तन किए बिना पहुँचती है ।

ठोस में ऊष्मा का संचरण चालन विधि द्वारा ही होता है । ठोस तथा पारे में ऊष्मा का संचरा केवल चालन द्वारा होता है । पदार्थ का वर्गिकरण 3 प्रकार से होता है –

चालक : सभी धातु , अम्लीय पदार्थ , मानव ।  

कुचालक : लकड़ी

ऊष्मारोधी : एबोनाइट, ऐस्बेस्टमस ।

संवहन (convection): इस विधि में ऊष्मा का संचरण पदार्थ के कणों के स्थानान्तरण के द्वारा होता है । इस प्रकार पदार्थ के कणों के स्थानान्तरण से धाराएँ बहती है , जिन्हें संवहन धाराएँ कहते है ।

गैसों एवं द्रवों में ऊष्मा का संचरण संवहन द्वारा ही होता है ।

वायुमंडल संवहन विधि के द्वारा ही गरम होता है । केवल गैसों और द्रवों में संवहन होता है । गैसों के अणु गर्म होने पर हल्के हो जाते हैं और ऊपर उठने लगते हैं ।

विकिरण (radiation): इस विधि में ऊष्मा , गरम वस्तु से ठंडी वस्तु की ओर बिना किसी माध्यम की सहायता के तथा बिना माध्यम को गरम किए प्रकाश की चाल से सीधी रेखा में संचरित होती है । ऊष्मा के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है ।

इसके द्वारा ऊष्मा का संचरण निर्वात में भी होता है । पृथ्वी तक सूर्य की ऊष्मा विकिरण द्वारा पहुँचती है ।

किरचौफ का नियम (Kirchhoff s law concept of physics ): इसके अनुसार अच्छे अवशोषक ही अच्छे उत्सर्जक होते है । अंधेरे कमरे में यदि एक काली ओर एक सफेद वस्तु को समान ताप पर गरम करके रखा जाए तो काली वस्तु अधिक विकिरण उत्सर्जित करेगी । अतः काली वस्तु अंधेरे में अधिक चमकेगी।

प्रकाश (light)

प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है जो कि विधुत चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है । इसका ज्ञान हमें नेत्रों द्वारा प्राप्त होता है ।

वे वस्तुएँ जो अपने आप प्रकाश उत्सर्जित नहीं करती हैं । परन्तु प्रकाश को जो उन पर पड़ता है, केवल परावर्तित करती हैं अप्रदीप्त वस्तुएँ (non-luminous objects) कहलाती हैं ।

प्रकाश कि प्रकृति के बारे में दो सिद्धांत प्रचलित हैं –

प्रकाश का तरंग सिद्धान्त : प्रकाश विधुत – चुम्बकीय तरंगों का बना है जिसे उनके संचरण के लिए माध्यम ठोस , द्रव अथवा गैस की आवश्यकता नहीं होती है । दृश्य – प्रकाश तरंगों की तरंग दैधर्य बहुत ही छोटी होती है (केवल लगभग 4×107 m से 8×107 m होती है )। प्रकाश तरंगों की चाल काफी तेज होती है । (निर्वात में लगभग 3×108 मीटर प्रति सेकण्ड होती है )।

प्रकाश का कणिका सिद्धान्त : प्रकाश कणों का बना होता , जो अत्यंत उच्च चाल से सीधी रेखा में प्रगमन करते हैं । इन मूलकणों को फोटान कहते हैं ।

प्रकाश का परावर्तन (reflection of light )

प्रकाश जब किसी वस्तु की सतह पर परता है, तब वह अवशोषित, संचारित तथा परवर्तित हो सकता है | यदि वस्तु सम्पूर्ण प्रकाश को, जो उस पर परता है, अवशोषित करता है, तो वह पूर्ण रूप से काला दिखाई देगा, जैसे- श्यामपट्ट |

यदि प्रकाश किरने किसी वस्तु की सतह पर परती है और वह वापस हो जाता है तो, यह प्रकाश का परावर्तन कहलाता है |

विभिन्न माध्यमों मे प्रकाश की चाल

माध्यमप्रकाश की चाल
निवात3x 108
|पानी2.25x 108
काँच2x 188
concept of physics

प्रकाश के परावर्तन के नियम : समतल दर्पण से अथवा गोलीय सतह (अवतलन दर्पण या उतल दर्पण) से प्रकाश का परावर्तन दो नियमो के अनुसार होता है, जिन्हे प्रकाश के परावर्तन के नियम कहा जाता है | प्रकाश के परिवर्तन के नियमो को नीचे दिया गया है |

1.परावर्तन का प्रथम नियम : आपतित किरण परवर्तित किरण और अभिलम्ब (आपतन बिन्दु पर ) सभी एक ही तल मेस्थित होते है |

2.परावर्तन का द्वितीय नियम :आपतन कोण सदैव परावर्तन कोण के बराबर होता है । यदि आपतन कोण i है और परावर्तन कोण r है,तो <i <r जब प्रकाश की किरणों दर्पण अथवा इसी तरह की किसी सतह पर पड़ती है, तो वे पुनः उसी समय माध्यम की तरफ एक निशिचत दिशा में लौट जाती है, जिस माध्यम से होकर आई रहती है । इसे प्रकार का परावर्तन कहा जाता है । यह दो प्रकार का होता है-

(i) नियमित परावर्तनयह चिकने पालिशदार पृष्ट से होता है, जब समानान्तर किरणों ऐसे पृष्ट पर पड़ती है, तब परावर्तन के बाद किरणों समानान्तर ही रहती है ।

(ii) अनियमित परावर्तनयह रुखड़े (खुरदरे) पृष्ट से होता है, जब समानान्तर किरणों ऐसे पृष्ट पर पड़ती है, तब परावर्तन के बाद किरणों सदा निशिचत नियमों के अनुसार होती हैं ।

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (total internal reflection concept of physics ): यदि किसी पदार्थ में प्रकाश के आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से कुछ अधिक हो जाय तो प्रकाश विरल माध्यम में चला आता है । प्रकाश के इस घटना को पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहा जाता है । तराशे हुए हीरे में चमक तथा मरीचिका (रेगिस्तान में एक प्रकाशित भ्रम) की घटना पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण ही होता है ।

जब प्रकाश की कोइ किरण किसी सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो अपवर्तन के कारणअपवर्तित किरण अभीलम्ब से दूर हटती जाती है ।इसके कारण अपवर्तन कोण का मान बढ़ता जाता है । जब एक निशिचत आपतन कोण के लिए अपवर्तन कोण का मान 90हो जाता है,

तो इसे आपतन कोण का क्रांतिक कोण कहते है । यदि सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती हुई आपतित किरण दोनों माध्यमों के सीमा पृष्ट पर इस प्रकार आपतित हो जाए तो इस दिशा में अपवर्तित किरण पुनः सघन माध्यम में लौट आती है । अर्थात आपतित किरण परवर्तित होकर पुनः उसी माध्यम में लौट आती है । इसे पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं । पूर्ण आंतारिक परावर्तन की स्थिति में प्रकाश का परावर्तन शत प्रतिशत होती है ।

पूर्ण आंतरिक परावर्तन के उपयोग :

. हीरा पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण ही चमकता है |

. गर्मियों के मौसम मे रेगिस्तान मे मरीचिका दिखती है |

. चिकित्सा, प्रकाशीय सिग्नल के संचरण एवं विधुत सिग्नल भेजने मे |

आंप्टिकल फाइबल भी पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिध्दांत पर कार्य करता है |

वस्तु तथा प्रतिबिंब

कोई चीज जो प्रकाश किरने प्रदान करती है , आंब्जेक्ट (वस्तु) कहलाती है |

. प्रतिबिंब एक प्रकाशीय छाया होती है | जब किसी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरने दर्पण से परवर्तित (अथवा तलो से अपवर्तित) होती है तो प्रतिबिंब बनाता है |

. प्रतिबिंब दो प्रकार के होते है-

(i)वास्तविक प्रतिबिम्ब   (ii)आभासी प्रतिबिम्ब

वास्तविक प्रतिबिम्ब : किसी स्रोत से प्रवाहित होने वाली प्रकाश की किरणें परावर्तन अथवा आपवर्तन के पशचात जिस बिन्दु पर मिलती हैं । वह बिन्दु स्रोत का वास्तविक प्रतिबिम्ब कहलाता है ।

आभासी प्रतिबिम्ब: यदि किसी स्रोत से चलने वाली प्रकाश किरणें परावर्तन अथवा अपवर्तन वह प्रतिबिम्ब जिसे पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है, उसे आभासी प्रतिबिंब कहते हैं और आभासी प्रतिबिंब को केवल दर्पण के अवलोकन से देखा जा सकता है ।

प्रकाश का अपवर्तन (refraction of light concept of physics )

प्रकाश किरण जब एक माध्यम से चलकर दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है, तब किरण अपने पूर्व पथ में मुड़ जाती है । माध्यम के बदलने से दूसरे माध्यम में किरण के इस प्रकार मुड़ने की घटना को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं । प्रथम माध्यम में किरण को आपतित किरण तथा दूसरे माध्यम में किरण को अपवर्तित किरण कहते हैं । आयतन बिन्दु पर पृथककारी पृष्ट के लम्बवत खींची गई रेखा को अभिलम्ब कहते हैं । जब प्रकाश किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती हैं तो वह अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है । इसके विपरीत जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तो वह अभिलम्ब से दूर हट जाती है ।

अपवर्तन की घटना में प्रकाश का वेग तरंगदैधर्य बदल जाती है परन्तु आवृति वही रहती है । पानी से भरी बाल्टी में छड़ की टेढ़ी दिखना (जिसमें छड़ का भाग बाल्टी में तथा कुछ बाल्टी से बाहर हो) तथा किसी तालाब को वास्तविक गहराई का कम प्रतीक होना, अपवर्तन की घटना के कारण होता है ।

रात्री के समय तारे की टिमटिमाहट अपवर्तन की घटना के कारण ही सूर्य के क्षितिज से कुछ नीचे चले जाने पर भी हमें दिखाई पड़ता रहता है जिसके कारण सूर्यदय और सूर्यास्त के बीच के समय में लगभग 4 मिनट की वृद्धि हो जाती है ।

प्रकाश का प्रकीर्णन (scattering of light concept of physics )

जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरात है जिसमें धूल तथा अन्य पदार्थ के अत्यन्त सूक्ष्म कण होते हैं, तो इनके द्वारा प्रकाश सभी अन्य सभी दिशाओ मे प्रसारित हो जाता है, प्रकाश की इस घटना को प्रकीर्णन कहते है | जिस रंग के प्रकाश का तरंग दैधर्य कम होता है, उस रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सर्वाधिक तथा जिस रंग के प्रकाश की तरंगदैधर्यअधिक होता है उसका प्रकीर्णन कम होता है प्रकाश मे नीले और बैगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम होता है इसलिए सुबह और साम को निम्न प्रकाश तरंग धार्य नीले और बैगनी के प्रकाश का प्रकीर्णन हो जाने के कारण सूर्य लाल दिखाई देता है

सिग्नल  देने के लिए लाल प्रकाश प्रकीर्णन कम होंने के कारण का प्रयोग किया जाता है | वायुमंडल के गैसों और धूल के कनो के द्वारा नीले प्रकाश का प्रकीर्णन हो जाने के कारण आकाश नीला दिखाई देता है जबकि चंद्रमा पर खड़े यात्री को (चंद्रमा पर वायुमंडल न होने के कारण आकाश काला दिखाई देता है समुन्द्र का जल भी प्रकाश के  प्रकीर्णन के कारण ही नीला दिखाई देता है|

विवर्तन (Diffraction): प्रकाश के किसी अवरोधक के किनारे पर थोड़ा मुड़कर उसकी छाया मे प्रवेश करने की घटना को विवर्तन कहते है प्रकाश की अपेक्षा ध्वनि मे विवर्तन अधिक होता है

इंद्र्धानुष (Rainbow): इंद्र्धानुष परावर्तन पूर्ण आंतरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वरा वर्ण वीपेक्षण के संयुक्त प्रभाव से बंता है इंद्र्धानुष मुख्यत 2 प्रकार के होते है

  1. प्राथमिक (Primary)
  2. द्वितीयक (Secondary)
  3. प्राथमिक इंद्र्धानुष (Primary): जब बुंदों पर आपतित होने वाली सूर्य किरणों का दो बाद अपवर्तन व एक बार परावर्तन होता है तो प्राथमिक इंद्र्धानुष बंता है प्राथमिक इंद्र्धानुष मे लाल रंग बाहर की ओर तथा बैगनी रंग अंदर की ओर होता है |
  4. द्वितीयक इन्द्रधनुष (secondary): जब बूँदों पर आपतित किरणों का दो बार अपवर्तन एवं दो बार परावर्तन हो तो द्वितीयक इन्द्रधनुष बनता है ।

वस्तुओं के रंग (Colour of objects): जब प्रकाश की किरणों वस्तुओं पर आपतित होती है तो वे उनसे परावर्तित होकर हमारी आँखों पर पड़ती है, इस कारण वस्तु हमें दिखाई देने लगती है । वस्तुएँ प्रकाश का कुछ भाग परावर्तित करती हैं तो कुछ भाग अवशोषित करती है । वस्तु प्रकाश के लिए भाग को परावर्तित करती है । वही वस्तु के रंग को निर्धारित करता है । सफेद दिखाई देने वाली वस्तुएँ प्रकाश के सभी रंगों को परावर्तित कर देती है जबकि काली दिखने वाली वस्तुएँ प्रकाश को पूर्णतः अवशोषित कर लेती है ।

रंगों का मिश्रण (MIXING OF COLOUR): नीला, हरा तथा लाल रंग प्राथमिक रंग (primary colours ) कहलाता है । पीला,मैंजेटा तथा पीकाक ब्लू को द्वितीयक रंग कहा जाता है । जब दोनों रंगों को परस्पर मिलाने पर सफेद रंग प्राप्त होता है तब उसे पूरक रंग (complementary colours ) कहते हैं । चित्र में प्रदर्शित रंग त्रिभुज (colours triangle ) से हम विभिन्न रंगों का मिश्रण प्राप्त कर सकते हैं ।

  • रंगीन टेलिविजन में प्राथमिक रंगों (लाल, हरा एवं नीला ) का प्रयोग होता है ।

नेत्र की रचना एवं प्रणाली एक फोटोग्राफिक कैमरे के समान है । आँख का आकार लगभग गोला होता है तथा बाहर से एक दृढ़ पटल के सामने का भाग कुछ उभरा हुआ एवं अपारदर्शी शवेत पर्त से आवृत रहती है । इस भाग को कार्निया (Cornea)कहते है | कार्निया के पृष्ठ भाग मे एक पारदर्शी द्रव भरा होता है , जिसे नेत्रोद (Aqueous Humour) कहते है | कार्निया के ठीक पृष्ठ भाग मे एक अपारदर्शी पर्दा होता है, आइरिस (lris) के नाम से जाना जाता है | नेत्र लेन्स की पक्ष्माभिकी पेशियो (Choroid muscles) के निलंबन स्नायुओ (Suspensory ligaments concept of physics ) द्वारा लटका होता है |

नेत्र लेन्स के पृष्ठभाग मे एक पारदर्शी द्रव भरा रहता है, जिसे काचाभ (vitreous Humor)कहते है |  दृढ़ पटल के अधो भाग में काली झिल्ली होती है | इसे रक्तक पटल (choroid) कहते है | इस पटल के नीचे आभ्यन्तर में एक पारदर्शी झिल्ली होती है | इसे रेटिना कहते हैं । जिसका निर्माण तंत्रिकाओं (opticnerves) द्वारा उसका प्रभाव मशीतशक को पाहुचना है, तदर्थ हमें वस्तु के रूप, रंग, आकार का ज्ञान होता है |

  • आँख की पेशियों द्वारा नेत्र लेन्स की फोकस दूरी को समायोजित करने की क्षमता को आंख की समंजन क्षमता कहते हैं ।
  • आँख से अधिकतम दूर स्थित उस बिन्दु को जिस पर राखी वस्तु को आंख स्पष्टतः देख सकती है, दूर बिन्दु (for point) कहते हैं ।
  • आँख से न्यूनतम दूरी पर स्थित उस बिन्दु को जिस पर रखी वस्तु को आँख स्पष्ट रूप से देख सकती है,निकट बिन्दु (near point) कहते हैं

प्रतिबिम्ब (image):  किसी भी वस्तु को जब हम दर्पण के सामने रखते हैं तो वस्तु से चलने वाली प्रकाश किरणें दर्पण के तल से परावर्तित होकर हमारी आँखों पर पड़ती हैं, जिससे हमें वस्तु की आकृति दिखाई देती है | इस आकृति को हम वस्तु का प्रतिबिम्ब कहते हैं । प्रति बिम्ब मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-

    (i) वास्तविक प्रतिबिम्ब           (ii) आभासी प्रतिबिम्ब

(i)वास्तविक प्रतिबिम्ब : किसी स्रोत से प्रवाहित होने वाली प्रकाश की किरणें किसी तल से परावर्तन अथवा आपवर्तन के पशचात जिस बिन्दु पर मिलती हैं वह बिन्दु स्रोत का वास्तविक प्रतिबिम्ब कहलाता है

(ii) आभासी प्रतिबिम्बयदि किसी स्रोत से चलने वाली प्रकाश किरणें परावर्तन अथवा अपवर्तन के पशचात जिस बिन्दु से फैलती हुई प्रतीत होती है,वह बिन्दु स्रोत का आभासी प्रति बिम्ब कहलाता है |

  • चन्द्रमा से परवर्तित प्रकाश को पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकेण्ड का समय लगता है | प्रकाश के प्रति व्यवहार के आधार पर वस्तुओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है |
  • प्रदीप्त वस्तुओं (luminous bodies): वे वस्तुएँ जो स्वय का प्रकाश से प्रकाशित होती है, जैसे- सूर्य, विधुत, बल्ब आदि |
  • अप्रदीप्त वस्तुएँ (nonluminous bodies): वे वस्तुएँ जिनका अपना स्वय का प्रकाश नहीं होता लेकिन उनपर प्रकाश डालने पर वे दिखाई देने लगती हैं, जैसे- मेज, कुर्सी आदि |
  • पारदर्शक वस्तुएँ (transparent bodies): वे वस्तुएँ जिनसे होकर प्रकाश की किरणें निकाल जाती हैं, जैसे- काँच, जल आदि |
  • अर्ध पारदर्शक वस्तुएँ (translucent bodies): कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं, जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है, तथा कुछ भाग बाहर निकाल जाता है, ऐसी वस्तुएँ को अर्द्ध पारदर्शक वस्तुएँ कहते हैं, जैसे- तेल लगा हुआ कागज |
  • अपारदर्शक वस्तुएँ (opaque bodies): अपारदर्शक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं, जिनमें होकर प्रकाश की किरणें बाहर नहीं निकल पातीं, जैसे – धातु |

लेन्स (lenses): लेन्स दो गोलाकार सतह अथवा पारदर्शक एवं अपवर्तक माध्यम है, जो समान्यतः सीसे से निर्मित होता है | लेन्स मुख्यतः दो प्रकार के होते है |

  • उतल लेन्स (convex lens)
  •  अवतल लेन्स (concave lens)

 उतल लेन्स (convex lens): मध्य भाग में मोटा तथा किनारों पर पतला होता हैं जबकि अवतल लेन्स बीच में पतला एवं किनारों पर मोटा होता है | उतर लेन्स तीन प्रकार के होते हैं-

  • उभयोतल लेन्स (Biconvex lens)
  • समतल उतल लेन्स (Plano convex lens)
  • अवतलोतल लेन्स (Concavo-convex lens)

इसी प्रकार अवतल लेन्स भी तीन प्रकार के होते हैं-

  • उभयावतल लेन्स (Biconcave lens)
  • समतल अवतल लेन्स (Plano-Concave lens)
  • उतलोतल लेन्स (Convexo concave lens)

अवतल लेन्स (concave lens): ऐसा लेन्स होता है जो अनन्त से आने वाली किरणों को सिकोड़ता है, इसीलिए इसे अभिसारी लेन्स भी कहते हैं जबकि अवतल लेन्स अनन्त में आने वाली किरणों को फैलाती हैं | इसीलिए इसे अफसारी लेन्स (diverging lens concept of physics ) भी कहते है |

किसी भी लेन्स की क्षमता डायोप्टर (diopter)से मापा जाता है |   

लेन्स की क्षमता =  

यदि किसी लेन्स को ऐसे माध्यम में डूबा दिया जाये जिसका अपवर्तनांक लेन्स के पदार्थ के अपवर्तनांक से अधिक हो तो लेन्स की फोकस दूरी तथा अपवर्तनांक बदल जाता है| अर्थात उतल लेन्स,अवतल लेन्स में तथा अवतल लेन्स उतल लेन्स में बदल जाती है| इसीलिए जल में वायु का बुलबुला उतल लेन्स की तरह का होत हुए भी अवतल लेन्स की तरह कार्य करने लगता है| वाहन चालक पीछे देखने के लिए उतल दर्पण का प्रयोग करते हैं|

समतल दर्पण (plane mirror): समतल दर्पण में बना प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उसी दूरी पर होता जिस दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने होती है|

घरो में प्रयोग होने वाले दर्पण समतल दर्पण होता है| समतल दर्पण से बना वस्तु का प्रतिबिम्ब, वस्तु के बराबर, उतनी ही दूरी पर तथा आभासी होता है|           

समतल दर्पण से को अपनी लंबाई का कम से कम आधी लम्बाई के दर्पण का उपयोग करना होता है| किसी कोण पर रखे दो समतल दर्पण के बीच रखी किसी वस्तु के प्रतिबिम्बों की संख्या दोनों दर्पण के बीच बनने वाले कोण पर निर्भर करता है|

    समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की विशेषताएँ concept of physics :

  1. समतल दर्पण में बना प्रतिबिम्ब आभासी होता है | उसे पर्दे पर नहीं प्राप्त किया जा सकता है | 
  2. समतल दर्पण में बना प्रतिबिंब सीधा होता है | वस्तु के समान ही उसकी भी वही साइड ऊपर की ओर रहती है |
  3. समतल दर्पण में प्रतिबिंब भी वस्तु के ही आकार का होता है |
  4. समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिंब दर्पणके पीछे उतनी ही दूरी पर होता है, जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने होती है |
  5. समतल दर्पण में बना प्रतिबिंब पाशर्व रूप प्रतिलोमित (या पशर्व रीति में प्रतिवर्तित ) होता है |

    समतल दर्पणों के उपयोग

  • समतल दर्पण को अपने आप को देखने के लिए प्रयोग किया जाता है|
  • समतल दर्पणों को कुछ व्यस्त मार्गो के अन्धे मोड़ों पर लगाया जाता है ताकि चालको को दूसरी ओर से आ रही गड़िया दिखाई दे सकें और दुर्घटनाएँ होने से बच सकें |
  • समतल दर्पणों को परिद (periscopes) के बनाने में प्रयोग किया जाता है |
  • किसी व्यक्ति को समतल दर्पण में अपना पूर्व प्रतिबिंब देखने के लिए अपनी लम्बाई के आधे भाग के बराबर दर्पण की आवश्यकता होगी |
  • यदि कोई वुयक्ति समतल दर्पण के लम्बवत किसी चाल से दर्पण के समीप आता है या दूर जाता है तो उसे अपना प्रति बिम्ब दुगुनी चाल से पास आता या दूर जाता प्रतीत होगा |
  • यदि आपतित किरण को नियम रखते हुए दर्पण को  कोण से घूमा दिया जाए तो, परावर्तित किरण 2  कोण से घूम जाएगी |
  • दो समतल दर्पण के बीच रखे वस्तुओं के प्रतिबिम्बों की

संख्या =  -1

या, n=  -1

जहा n प्रतिबिम्बों की संख्या है एवं  दोनों के बीच का बना कोण है |  

जैसे यदि  = तो प्रतिबिम्बों की संख्या

=  – 1

= 4-1

= 3 

  • यदि दो समतल कोण दूसरे के समानांतर रखे जाए तो प्रतिबिंबों की संख्या अनंत होगी ।

गोलीय दर्पण से परावर्तन (reflection from spherical mirror concept of physics ): गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं –

(i) अवतल दर्पण     (ii) उतल दर्पण

अवतल दर्पण में बने प्रतिबिम्ब की स्थिति एवं प्रकृति

                क्र.              वस्तु की स्थितिप्रतिबिम्ब की स्थिति वस्तु की तुलना में प्रतिबिम्ब का आकार प्रतिबिम्ब की प्रकृति 
 अनन्त परफोकस परबहुत छोटाउल्टा व वास्तविक
 वक्रता केन्द्र एवं    अनन्त के बीच     फोकस एवं वक्रता  केन्द्र के बीचछोटाउल्टा व वास्तविक
 वक्रता केन्द्र परवक्रता केन्द्र परसमान आकार काउल्टा व वास्तविक
 फोकस तथा वक्रता  केन्द्र के बीचवक्रता केन्द्र एवं  अनन्त के बीचबड़ाउल्टा व वास्तविक
 फोकस परअनन्त परबहुत बड़ाउल्टा व वास्तविक   
   फोकस तथा ध्रुव  के बीच  दर्पण के पीछे  बड़ा  सीधा व आभासी  
concept of physics

अवतल दर्पण का उपयोग :

  • बड़ी फोकस दूरी वाला अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने में काम आता है ।
  • आँख, कान एवं नाक के डाक्टर के द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला दर्पण
  • गाड़ी के हेड लाइट एवं सर्चलाइट में
  • सोलर कुकर में

उतल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब: उतल दर्पण में प्रत्येक दशा में प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे, उसके ध्रुव और फोकस के बीच वस्तु से छोटा, सीधा एवं आभासी बनता है।

उतल दर्पण का उपयोग :

इसका उपयोग गाड़ी में चालक की सीट के पास पीछे के दृश्य को देखने में किया जाता है । (side mirror के रूप में )

सोडियम परावर्तक लैम्प में

दृष्टि दोष (defects of vision)

मनुष्य की सामान्य आँख के लिए दृष्टि विस्तार लगभग 25 सेमी. से लेकर अनन्त तक होता हैं मानव नेत्र में दो प्रकार के दोष होते हैं – (i) निकट दृष्टि दोष (myopia of short sighte ness), (ii) दूरदृष्टि दोष (hyper metropia of long sighted ness)।

निकट दृष्टि दोष (myopia of short sighted ness): आँख में यह बीमारी होने से दूर की वस्तुएँ स्पष्टतः नहीं दिखाई देती किन्तु नजदीक की वस्तु साफ दिखाई देती है । इस दृष्टि दोष में वस्तु का प्रतिबिम्ब आँख की रेटिना पर न बनकर कुछ आगे बन जाता है । यह दोष आँख की गोली अथवा अधिक लम्बी होने तथा आँख के लेन्स का सामान्य फोकस दूरी के घट जाने से उत्पन्न होता है । दोष को हटाने के लिए अवतल लेन्स का प्रयोग किया जाता है क्योकि concept of physics यह लेन्स अपसारी (divergent)प्रकृति का होने के कारण किरणें को फैलाकर रेटिना पर केन्द्रीय कर देता है ।

(II) दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia): इस दृष्टि दोष में दूर की वस्तु स्पष्टत : दिखाई देती है किन्तु नजदीक की वस्तु स्पष्ट नही हो पाती | इसमें वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर उसमे पीछे बन जाता है | इस दोष को हटाने के लिए उतल लेन्स का प्रयोग किया जाता है क्योंकी यह अभिसारी लेन्स (Convergent lens )की तरह व्यवहार करता है तथा किरणों को सिकोड़कर पुनः रेटिना पर ला देता है |

(iii)जरा दृष्टि दोष (Pressbyopia): ये बुढ़ापे का लक्षण होता है जिसमे निकट तथा दूर दृष्टि दोष की स्थितियाँ एक साथ उत्पन्न होती है | इस दोष को दूर करने के लिए बैफोकल लेंस का इस्तेमाल किया जाता है |

(iv)अबिन्दुकता (Astigmatism): इस दृष्टि दोष में कार्निया की वक्रता विभिन्न दिशाओ में हो जाती है | इस दोष को दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस के चश्मे का इस्तेमाल किया जाता है |

(v)मोतियाबिन्द (Cotaract): इस दृष्टि दोष में नेत्र लेंस अपारदर्शी हो जाता है | इस दोष को दूर करने के लिए लेसिक लेजर पद्धति का प्रयोग किया जाता है |

सूक्ष्मदर्शी(Microscope)

सूक्ष्मदर्शी ऐसा प्रकाशित यंत्र है जिसकी सहायता से सूक्ष्म वस्तुए देखि जाती है इस यांत द्वारा सूक्ष्म वास्तु का आभासी एवं आवधिर्त प्रतिबिंब स्पस्ट दृष्टी सकी न्यूनतम दुरी पर बनता है जिससे वह स्पस्ट दिखाई देता है किसी वास्तु का आकर जो हमें द्रिस्तिगोचार होता है उसके द्वारा हमारे नेत्र पर बने दर्शन कोन पर निर्भर रहता है दर्शन कोन जितना छोटा होता है उतनी ही वास्तु छोटी दिखाई पार्टी है वास्तु को जैसे जैसे आँख के करीब लाया जाता है

उसके द्वारा बने दर्शन कोन का मान बढ़ जाता है फलतः वास्तु का आकर भी बढ़ता दिखाई परता है|

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound microscope) : इस सूक्ष्मदर्शी की खोज गैलिलियो नामक वैज्ञानिक ने की थी इस सूक्ष्मदर्शी की आवाधार्ण क्षमता दस हजार ह्गुना होती है|

इलेक्ट्रोन सूक्ष्मदर्शी (Electron microscope): इस सूक्ष्मदर्शी की खोज नॉल एवं रसका नामक वैज्ञानिक ने की थी इस सुक्ष्म्दारसी की आव्धार्ण क्षमता एक लाख गुना होती है|

ध्यातव्य तथ्य

किसी वास्तु का रंग इस बात पर निर्भर करता है की वह किस रंग का प्रकास अवशोषित करती है और किस रंग के प्रकास को प्रवर्तित सामान्यतया सूर्य के दृस्य प्रकास मासे 7 रंग होता है इसमें कुछ रंग के प्रकास को वास्तु अवशोषित कर लेती है तथा कुछ को परावर्तित वस्तु  जिस रंग के प्रकास को प्रवर्तित करती है उसी रंग को दिखाई देती है ।

जैसे – पौधों की पति द्वारा हरे रंग के प्रकाश को परवर्तित करने के कारण हरे रंग की दिखाई देती है । जब वस्तु सभी रंग के प्रकाश को अवशोषित कर लेती है तो वस्तु काले रंग की दिखती है । काला कोई रंग नहीं, बल्कि सभी रंग के प्रकाश के अनुपस्थिति का प्रतीक है concept of physics ।

व्यक्ति 10 सेमी. की न्यूनतम दूरी पर स्थित किसी वस्तु को स्पष्ट देख सकता है । जबकि पढ़ते समय किताब और आँख के बीच औसत दूरी 25 सेमी. होनी चाहिए ।

ध्वनि (sound):

ध्वनि की चाल ठोस में सर्वधिक उसके बाद द्रव तथा गैस में सबसे कम होती है और निर्वात में नहीं होती है । ध्वनि एक प्रकार की ऊर्जा है । इसकी उत्पति कम्पायमान वस्तुओं से होती है। इसका आशय यह नहीं की प्रत्येक कम्पनन के बीच ध्वनि ही उत्पन्न हो, ध्वनि संचरण के लिए द्रव्यत्मक माध्यम अर्थात ठोस, द्रव एवं गैस आवश्यक होता है ।

इसलिए चन्द्रमा तथा अन्य वायुमंडल रहित स्तनों पर बातचीत (ध्वनि)नहीं किया जा सकता है । ध्वनि की चाल ठोस में सर्वधिक, द्रव में ठोस से कम तथा गैस में सबसे कम होती है । वायु में ध्वनि की चाल 332 मीटर / सेकेण्ड होता है ।

ध्वनि स्रोत                                               तीव्रता (डेसिबल)

सामान्य बातचीत की                                          40-45

पेट्रोल इंजन                                                    60-65

डीजल इंजन                                                    70-75  

लाउडस्पीकर / हार्न                                           80-90

राकेट                                                            160-170  

मिसाइल                                                         180-196

साइरन                                                           190-200

तरंग गति (Wave Motion)- यह एक प्रकार का विक्षोभ है | विक्षोभ के आगे बढ्ने की गति कहते है | तरंगो के द्वारा ऊर्जा का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक होता है |

तरंग निम्न प्रकार के होते है |

अनुप्रस्थ तरंग गति (transverse wave motion) : इन्हे केवल ठोस मे उत्पन्न किया जा सकता है | जब तरंग गति की दिशा तथा माध्यम के कणो के दालन करने की दिशा एक दूसरे के लम्बवत होती है, तो इस प्रकार की तरंगो बको अनुप्रस्थ तरंग गति कहते है |

अनुदैद्ध तरंग गति (Longitudinal wave) : इसमे माध्यम के कण अपनी मध्य स्थिति पर तरंग की दिशा मे समान्तर कांपिती होते है इसमे एक सम्पीडन और एक विरलन मिलकर एक तरंग की रचना करते है जैसे ध्वनि तरंग इन्हे ठोस द्र्वय तथा गैस तीनों मे उत्तपन किया जा सका है

तरंग दैध्रय (Wave Length): किसी तरंग गति मे समान कला मे दोलन करने वाले दो क्रमागत कणो के बीच की दूरी को तरंग ध्र्य (wave length)        

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